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भीमराव रामजी आम्बेडकर

               भीमराव रामजी आम्बेडकर


                                      दुनिया में सबसे ज्यादा शिक्षित व्यक्ति कौन है?
सबसे बड़े विद्यावान माने जाते हैं। उनके पास 16 डिग्रियां थी, जो विश्व में किसी के पास नहीं है।
 भीमराव रामजी आम्बेडकर (बाबासाहेब)
उनकी जन्म की तारीख : 14 अप्रैल 1891 
मृत्यु की  तारीख: 6 दिसंबर 1956   शिक्षा: कोलंबिया विश्वविद्यालय (1927

पत्नी: सविता आंबेडकर (विवा. 1948–1956), रमाबाई आम्बेडकर (विवा. 1906–1935)
बच्चे: यशवंत भीमराव अम्बेडकर (उनके अन्य चार बच्चो की मृत्यू बचपन में ही हो गई थी)
आंबेडकर परिवार भारत के आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के मंडनगड तालुका में आंबडवे गाँव से मराठी पृष्ठभूमि का था। इस गांव में डॉ. बी. आर. आंबेडकर के पूर्वज रहते थे  जन्मभूमि है, इसलिये सन् 2003 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस शहर का नाम बदलकर डॉ॰ आम्बेडकर नगर रख दिया गया है। भीमराव को उनके दूसरे नाम भीम, भीवा और बाद में बाबासाहेब के नाम से जाना जाता था।
1909 में, भीमराव आंबेडकर ने रमाबाई से शादी की। उनके पांच बच्चे थे – यशवंत, गंगाधर, रमेश, इंदु (बेटी) और राजरत्न। यशवंत (१९१२-१९७७) के अलावा, अन्य चार की दो साल से कम उम्र में मृत्यु हो गई। यशवंत अकेले उनके वंशज के रूप में जीवित रहे। उनकी दूसरी पत्नी सविता आंबेडकर की कोई संतान नहीं थी।

                            बाबासाहेब आंबेडकर विचार                           
  • * मैं एक समुदाय की प्रगति को उस प्रगति की डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।
  • * बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।
  • * भाग्य में नहीं, अपनी शक्ति में विश्वास रखो।
  • * शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरषों के लिए।
                     अंबेडकर ने शिक्षा के बारे में क्या कहा?
शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ शिक्षा वही है जो न केवल मनुष्य को साक्षर करे अपितु उसका मानसिक विकास कर उसके आत्माभिमान व विवेक को भी जाग्रत करें। बाबा साहेब के शब्दों में - “ समाज में शिक्षा ही समानता ला सकती है। जब मनुष्य शिक्षित हो जाता है तब उसमें विवेक - सोच की शक्ति पैदा                            अंबेडकर कितने घंटे पढ़ते हैं?
अम्बेडकर का जीवन। वह एक सामाजिक परिवर्तनकर्ता और हमारे देश के एक महान नेता थे, लेकिन उनके व्यक्तित्व के केंद्र में उनका समर्पण था। यह सर्वविदित तथ्य है कि वे लगातार अठारह घंटे पढ़ाई में लगाते थे। 

18 घंटे का अध्ययन मैराथन अंबेडकर की विरासत को याद करता है

बाबासाहब आंबेडकर के ये अनमोल विचार आपकी लाइफ बदल सकता है


1)हमें शिक्षा के प्रसार को उतना ही महत्व देना चाहिए जितना कि हम राजनीतिक आंदोलन को महत्व देते हैं।
2)तकनीकी और वैज्ञानिक प्रशिक्षण के बिना देश की कोई भी विकास योजना पूरी नहीं होगी।
3) शिक्षित बनो, आंदोलन करों, संगठित रहो, आत्मविश्वासी बनो, कभी भी हार मत मानो, यही हमारे जीवन के पांच सिद्धांत हैं।
4)आप शिक्षित हो गए इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ हुआ। शिक्षा के महत्व में कोई संदेह नहीं है, लेकिन शिक्षा के साथ-साथ शील (नैतिकता) भी सुधारी जानी चाहिए… नैतिकता के बिना शिक्षा का मूल्य शून्य है।
5)इस दुनिया में स्वाभिमान से जीना सीखो। इस दुनिया में कुछ करके ही दिखाना है यह महत्वाकांक्षा हमेशा आपके अंदर होनी चाहिए।
6)शिक्षा बााघिन का दूध है और जो उसे पिएगा वह बाघ की तरह गुर्राएगा जरूर। 
7)शिक्षा हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और और किसी को भी इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
8) ज्ञान और विद्या केवल पुरुषों के लिए नहीं हैं; वे महिलाओं के लिए भी आवश्यक हैं।
9)जब विद्यार्थी सीख रहे हों तो उन्हें ‘सीखने’ का एक ही लक्ष्य अपने सामने रखना चाहिए। 
10)जो आदमी को योग्‍य न बनाए, समानता और नैतिकता न सिखाए, वह सच्‍ची शिक्षा नहीं है। सच्‍ची शिक्षा तो समाज में मानवता की रक्षा करती है, आजीविका का सहारा बनती है, आदमी को ज्ञान और समानता का पाठ पढाती है। सच्‍ची शिक्षा समाज में जीवन का सृजन करती है।
                 भीमराव रामजी आम्बेडकर यांनी एक प्रेरणा दिली त्यांनी दलित बौद्ध चळवळीला प्रेरणा दिली आणि अस्पृश्य (दलित) लोकांविरुद्ध होणारा सामाजिक भेदभाव नष्ट करण्यासाठी चळवळ उभारली, तसेच महिलांच्या आणि कामगारांच्या हक्कांचे समर्थन केले. ते ब्रिटिश भारताचे मजूरमंत्री, स्वतंत्र भारताचे पहिले कायदेमंत्री, भारतीय संविधानाचे शिल्पकार, भारतीय बौद्ध धर्माचे पुनरुज्जीवक होते.                        डॉ बी आर आंबेडकर हे कशासाठी प्रसिद्ध आहेत?
डॉ. बी.आर. आंबेडकर हे बाबासाहेब आंबेडकर या नावाने प्रसिद्ध होते आणि ते भारतीय राज्यघटनेच्या शिल्पकारांपैकी एक होते हे सर्वांना माहीत आहे. ते एक अतिशय प्रसिद्ध राजकीय नेते, प्रख्यात कायदेतज्ज्ञ, बौद्ध कार्यकर्ते, तत्त्वज्ञ, मानववंशशास्त्रज्ञ, इतिहासकार, वक्ते, लेखक, अर्थशास्त्रज्ञ, विद्वान आणि संपादक होते.
 त्यांनी कोट्यवधी अनुयायांसह केलेला बौद्ध धर्माचा स्वीकार ही क्रांतिकारक घटना होती. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी14 ऑक्टोबर 1935  नाशिकजवळील येवला येथे धर्मातराची घोषणा 

        बाबासाहेब आंबेडकरांनी धर्मांतर करण्यासाठी 21 वर्षं


घेतली   
14 ऑक्टोबर 1956 ला दसऱ्याच्या दिवशी बाबासाहेब आंबेडकरांनी बौद्ध धर्माची दीक्षा घेतली. म्हणूनच दसऱ्याच्या दिवशी बाबासाहेबांचे हजारो अनुयायी नागपुरात दीक्षाभूमीवर येतात आणि बौद्ध धर्माची दीक्षा घेतात.बाबासाहेब आंबेडकर यांच्या कार्याचा पट खूप मोठा आहे. ते वकील होते, विद्वान होते, सामाजिक चळवळीत अग्रेसर होते. मात्र त्यांच्या कार्याचा लसावि काढायचा झाल्यास दलित समाजाच्या व्यक्तींना मनुष्याचा दर्जा मिळवून देणं, त्यांचा आत्मसन्मान वाढवणं आणि आत्मोद्धार करण्यास समर्थ करणं ही त्यांच्या आयुष्याचे मुख्य कार्य होते.

हिंदू धर्माचं पुनरुज्जीवन करणे, हिंदू धर्माची मानहानी आणि अवनती रोखणे आंबेडकरांना अपेक्षित होते. 'मी हिंदू म्हणून जन्माला आलो पण हिंदू म्हणून मरणार नाही' अशी घोषणा बाबासाहेबांनी केली होती. Anhilation of caste या पुस्तकात त्यांनी हिंदू धर्मातील असमानतेवर त्यांनी आसूड ओढले होते. शेवटी त्यांनी बौद्ध धर्माचा स्वीकार 14 ऑक्टोबर 1956 रोजी केला.  मात्र हिंदू धर्मातील अनेक गोष्टी आयुष्यभर खटकत असताना आयुष्याच्या अगदी शेवटी त्यांनी बौद्ध धर्माचा स्वीकार का केला याबद्दल बोलताना सामाजिक कार्यकर्त्या रुपा कुलकर्णी बोधी म्हणतात, "त्यांनी हिंदू धर्माला सुधारण्याचा बराच प्रयत्न केला. त्यांनी आकसाने बौद्ध धर्मात प्रवेश केलेला नाही. महाडचा सत्याग्रह, काळाराम मंदिराचा सत्याग्रह ही त्याचीच उदाहरणं आहेत. त्यांनी अनेक हिंदू नेत्यांशी चर्चा केली. त्यात अगदी एस.एम जोशी, सावरकर, टिळकांचा मुलगा श्रीधर टिळक यांच्याशी चर्चा केली होती.  अनेक वर्तमानपत्रं केली. त्यातून सवर्ण समाजाचं प्रबोधन केलं. ती वापरत असताना सद्हेतुने कान उघडणी केली. 1942 पासून तर ते राजकारणातही होते. घटनाही लिहिली. घटनेत सगळ्यांना अधिकार दिले होते. तरीही त्यांचं समाधान झालं नाही. शेवटचा उपाय म्हणून त्यांनी हिंदू धर्मावर बहिष्कार घालण्याचा निर्णय घेतला.      भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार

अम्बेडकर, भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार एक उत्कृष्ट विद्वान, एक दार्शनिक, एक दूरदर्शी, एक मुक्तिदाता और एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। उन्होंने समाज के दबे-कुचले और दबे-कुचले वर्गों के मानवाधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। वह सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष के प्रतीक के रूप में खड़े हैं।   डॉ भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान के जनक के रूप में जाना जाता है। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने एक मसौदा समिति का गठन किया। इस मसौदा समिति के अध्यक्ष अम्बेडकर थे।

संविधान सभा का गठन  छह दिसंबर 1946 को हुआ था  इसके तहत संविधान निर्माण की समिति बनी, जिसे ड्राफ्ट कमेटी भी कहा जाता है। उसके जिम्मे संविधान के तब तक तैयार संविधान के प्रारूप पर बहस करके उसे 389 सदस्यीय संविधान सभा में प्रस्तुत करना था, जो उसे अंतिम रूप देगी। संविधान सभा का निर्माण कितने दिन में?            संविधान सभा ने भारत के संविधान को 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया। 

आजादी के पहले की गई थी संविधान की मांग

वैसे तो साल 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की मांगी को पहली बार अपनी अधिकृत नीति में शामिल किया. केवल भारतीयों को लेकर बनने वाली एक स्वंतत्र संविधान सभी की यह मांग दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान और तेज हो गई. बता दें कि संविधान सभा के सदस्य 1935 में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से चुने गए. फिर साल 1946 के दिसंबर महीने में एक संविधान सभा का गठन किया गया.

इसकी पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप में इसकी वापस बैठक हुई. संविधान सभा के इन सदस्यों के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी थी. दरअसल, भारत में कई समुदाय थे. उनकी न तो भाषा एक थी, ना एक धर्म था और न ही एक जैसी संस्कृति थी. वैसे भी जब संविधान लिखा जा रहा था, उस समय हमारा देश भारी उथल-पुथल से गुजर रहा था. भारत और पाकिस्तान का बंटवारा लगभग तय हो चुका था.   
हालांकि, संविधान सभा के सदस्यों ने इस ऐतिहासिक दायित्व को बहादुरी के साथ पूरा किया और देश को एक ऐसा कल्पनाशील दस्तावेज दिया, जिसमें राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए विवधता के प्रति गहरा सम्मान दिखाई देता है. साथ ही दिसंबर 1946 से नवंबर 1949 के बीच संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए नए संविधान का एक प्रारूप तैयार किया. भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाया था, जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ. 
संविधान के निर्माण पर कुल 64 लाख रुपये का खर्च आया था

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी किताबों की सूची 


 क्रम संख्या

  पुस्तक का नाम

    छपाई का वर्ष

 1.

  भारत का राष्ट्रीय अंश

  1916

 2.

  भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण

  1916

 3.

  भारत में लघु कृषि और उनके उपचार

  1917

 4.

  मूल नायक (साप्ताहिक)

  1920

 5.

  ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण

  1921

 6.

  रुपये की समस्या: उद्भव और समाधान

  1923

 7.

  ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय

  1925

 8.

  बहिष्कृत भारत (साप्ताहिक)

  1927

 9.

  जनता (साप्ताहिक)

  1930

 10.

जाति का उच्छेद

  1937

 11.

  संघ बनाम स्वतंत्रता

  1939

 12.

  पाकिस्तान पर विचार

  1940

 13.

  श्री गाँधी एवं अछूतों की विमुक्ति

  1942

 14.

  रानाडे, गाँधी और जिन्ना

  1943

 15.

  कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया

  1945

 16.

  शूद्र कौन और कैसे

  1948

 17.

  महाराष्ट्र भाषाई प्रान्त

  1948

 18.

  भगवान बुद्ध और उनका धर्म

  1957

                   


                                                                                             बाबासाहेब के निजी पुस्तकालय “राजगृह”में 50,000 से भी अधिक उनकी किताबें थी और यह विश्व का सबसे बडा निजी पुस्तकालय था. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर थे.

वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओँ के जानकार थे                भीमराव रामजी आम्बेडकर 





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